ज़हर शब्दों में नहीं, इंसानों की आदतों में छिपा होता है — पहचानिए ऐसे चुभते हुए लोग।

ज़हर शब्दों में नहीं, इंसानों की आदतों में छिपा होता है — पहचानिए ऐसे चुभते हुए लोग।

Ghibli-style illustration inspired by Shabbir Khan’s life and writings

आज आपको रू-ब-रू कराता हूँ उस शख़्स से — जिसे यह ग़लतफ़हमी है कि अगर वह बीच-बीच में लोगों को नीचा दिखाता रहेगा, तो दुनिया उसे ‘सुपर स्मार्ट’ मानने लगेगी।
ऐसे नमूने हर मोहल्ले, हर दफ़्तर, हर व्हाट्सऐप ग्रुप में फलते-फूलते हैं। आगे पढ़ेंगे तो आप खुद बोल उठेंगे — ये तो मेरे आस-पास भी घूम रहा है!

इन लोगों ने न जाने कहाँ से यह गुरुमंत्र ले लिया कि हर बात में किसी की कमी निकाल देना, किसी भी तरह का कटाक्ष मार देना, और हर दूसरे वाक्य में एटीट्यूड उछाल देना ही “ऊपर उठने” का शॉर्टकट है।

चलिए, अब आपको इन “शॉर्टकट से चलने वाले” लोगों की अलग-अलग वैरायटी दिखाता हूँ:

वैरायटी नंबर 1 — ‘तारीफ़ में छुपा तीर रखने वाले’

यह वो शख़्स है जो आपसे बहुत मिठास से बात करेगा, लेकिन जैसे ही उसे महसूस होगा कि “अरे, मैं तो आज कोई कमी निकालने वाला तीर चला ही नहीं पाया,”
बस फिर उसी क्षण हमला कर दिया जाता है।

ये लोग जब किसी की तारीफ़ करते हैं, तो भी ऐसे अंदाज़ में कि मानो आपका हौसला बढ़ा रहे हों।
लहजा हमेशा ऐसा रहता है कि आसपास वालों को लगे — यह तारीफ़ मजबूरी में की जा रही है ताकि आप थोड़ा मोटिवेट हो जाएँ।

इससे होता यह है कि ये लोग अपने ऊपर लगे “कमियाँ निकालने वाले” टैग को थोड़ी देर के लिए धो लेते हैं —
कुछ-कुछ वैसा, जैसे किसी पर चप्पल फेंककर बाद में “सॉरी” कह देना।

वैरायटी नंबर 2 — ‘हर बात को सवाल बना देने वाले’

ये महाशय किसी की भी बात सुनते समय ‘हामी’ भी एक विशेष एटीट्यूड में भरते हैं।
आपने कुछ नया बताया? तुरंत जवाब आएगा:
“अच्छा? … अच्छा?”

वो भी ऐसा “अच्छा” नहीं जो उत्साह दिखाए —
बल्कि ऐसा जैसे पूछ रहे हों:
“सच में? तू मुझसे ज़्यादा जानता है?”

ये तब भी यही प्रतिक्रिया देंगे जब इन्हें कोई नई और काम की जानकारी मिल रही हो —
क्योंकि इन्हें डर होता है कि आसपास के लोगों को पता न चल जाए कि “अरे, यह बात तो इन्हें पता ही नहीं थी!”

इनके दूसरे एटीट्यूड शब्द —
“क्यों? … क्यों?”

वैरायटी नंबर 3 — ‘मौका मिले तो ज़हर बरसाने वाले’

ये महाशय गुस्सैल लोगों पर डंक नहीं चलाते — क्योंकि जवाब में डंडा भी चल सकता है।
लेकिन जलन तो जलन है; वह इनके भीतर लगातार उबलती रहती है।

जैसे ही अपने जैसे ज़हरीले समूह में शामिल होते हैं — और आपसे ज़रा-सी भी गलती हो जाए —
बस, इनके चेहरे पर शैतानी मुस्कान और नुकीले दाँत उभर आते हैं।

अगर किसी महफ़िल में आपकी काबिलियत की चर्चा हो रही हो —
तो आपकी गैरहाज़िरी का पूरा फ़ायदा उठाकर ये दिल खोलकर आपकी बुराई करेंगे।
जैसे ये लंबे समय से ज़हर रोके बैठे हों।

वैरायटी नंबर 4 — ‘अपनी कमी छिपाकर दूसरों पर हँसने वाले’

अगर ये मोटे हैं, तो किसी के दुबलेपन का मज़ाक उड़ाएँगे — ताकि किसी का ध्यान इनके मोटापे के भद्देपन पर न जाए!

अगर ये नाटे हैं, पर रंग थोड़ा उजला है, तो साँवले लोगों का मज़ाक उड़ाएँगे — ताकि किसी का ध्यान इनके ठिगनेपन पर न चला जाए।

इनका पूरा फ़ॉर्मूला बहुत सीधा है —
मोटे हैं → दुबलेपन का मज़ाक
गोरे हैं → साँवलेपन का मज़ाक
नाटे हैं → लंबाई का मज़ाक उड़ाने की बजाय दुबलेपन या साँवलेपन का मज़ाक

लंबे कद का मज़ाक ये दिल से उड़ा ही नहीं पाते — क्योंकि लंबाई तो इनकी दिली ख़्वाहिश है, या कहें कि इनका अधूरा सपना, जो सपना ही रह गया।
इसलिए उसकी जगह दुबलेपन या रंग पर तीर चला देते हैं।

वैरायटी नंबर 5 — ‘भीड़ में दूसरों को गिराने वाले’

इन लोगों को पब्लिक में किसी को असहज करना बड़ा आनंद देता है।
कभी किसी की नकली ज्वेलरी का मज़ाक उड़ाएँगे,
कभी किसी पुरानी चीज़ पर ताना मारेंगे,
कभी जानबूझकर ऐसा सवाल करेंगे —
“अरे, यह तो तुम्हारे पास होगा ना?”
जबकि इन्हें पहले ही पता होता है कि आपके पास वह चीज़ है ही नहीं।

और अगर आपके घर कोई पुरानी चीज़ है —
तो वे अपनी नयी चीज़ से उसकी तुलना करके महफ़िल में आपको नीचा दिखाने में क्षणभर नहीं लगाएँगे।

वैरायटी नंबर 6 — ‘जगह-जगह मज़ाक ढूँढने वाले’

आप अच्छे-भले बैठे हों, बातचीत किसी और दिशा में चल रही हो —
लेकिन ये महाशय अचानक आपका नाम निकालकर आपकी कमी जोड़ देंगे।

ऐसा इसलिए क्योंकि इन्हें आपकी वह बात बर्दाश्त नहीं होती कि लोग आपको पसंद करते हैं।
इन्हें लगता है कि अगर आपको लोग पसंद करेंगे, तो इनकी अपनी “महत्ता” कम हो जाएगी।

वैरायटी नंबर 7 — ‘अपनों को आसमान पर चढ़ाने वाले’

ये वो लोग हैं जो समारोहों में अपनी फैमिली की तारीफ़ ऐसे करेंगे कि लगे —
बाक़ी लोग तो बस बैकग्राउंड का हिस्सा हैं।

कोई पूछ ले —
“आपकी बेटी कौन-सी है?”
तुरंत जवाब —
“अरे, वो रही ना… जो सबसे अलग दिख रही है!”

ऐसे लोग बुरे हमेशा नहीं होते,
लेकिन इनकी बुरी आदत यही होती है कि अपने परिवार की तारीफ़ इस अंदाज़ में करते हैं
कि बाकी लोगों की बुराई अपने-आप हो जाती है।

वैरायटी नंबर 8 — ‘हर फंक्शन में दोष ढूँढने वाले’

किसी की शादी में जाएँगे, और लौटेंगे एक पूरी आलोचनात्मक रिपोर्ट के साथ —
यह गलत, वो गलत, यह होना चाहिए था, वो नहीं होना चाहिए था…
खाने से लेकर सजावट तक हर बात में कमी ढूँढ लेंगे।

उन्हें यह ज्ञान नहीं होता कि उनके घर भी जब कोई समारोह होगा —
तो कमियाँ होंगी।
लेकिन अपने मामले में आलोचना की बैटरी तुरंत डिस्चार्ज हो जाती है।

वैरायटी नंबर 9 — ‘सच सुनकर तुरंत आहत होने वाले’

अगर आपने इनके भले के लिए कोई सही बात कह दी — जो सलाह जैसी भी न हो —
तो ये ऐसे आहत होंगे जैसे आपने इनके आत्मसम्मान पर गहरी चोट कर दी हो।

हँसकर मान लें?
नहीं।

ये तुरंत आपकी किसी नयी कमी की खोज में लग जाएँगे, ताकि संतुलन बना रहे।

वैरायटी नंबर 10 — ‘तुलना के ज़रिए ज़हर फैलाने वाले’

यह वैरायटी तो सबसे “महान” होती है।
आप कोई प्रोडक्ट या सर्विस दे रहे हों —
तो ये आपके सामने ही किसी और की सर्विस की तारीफ़ करेंगे,
सिर्फ इसलिए कि आपको उसके मुक़ाबले में छोटा दिखा सकें।

ऐसे लोगों से दूरी ही ठीक है —
क्योंकि ये जब भी आपकी बुराई करेंगे, वह आपके काम की गुणवत्ता पर नहीं,
बल्कि अपनी ज़हर उगलने वाली आदत पर आधारित होगी।
भले ही आपका काम दूसरों से बेहतर हो — इनका पेशा ही ज़हर फैलाना है।

अंत में...

इन वैरायटी वालों की सबसे बड़ी गलतफ़हमी यही है कि किसी को नीचा दिखाने से उनका महत्व बढ़ जाएगा।
जबकि सच यह है —
हर इंसान अपने भीतर एक अलग कला लेकर पैदा होता है।

दुनिया कलाकारों से भरी है — हम उन्हें सुनते हैं, देखते हैं, सराहते हैं।

क्या उनकी चमक से हमारा नूर कम होता है?
नहीं।

तो फिर यह बेवजह हीही–होहो क्यों?