नियत खराब आदमी की उधारी और उसके बहुरंगी व्यवहार की दास्तान
Satireआज मैं आपको नियत खराब आदमी की उधारी और उस उधारी के बाद उसके बहुरंगी व्यवहार की दास्तान सुनाता हूँ।
सबसे पहले तो ये महानुभाव पैसे माँगने आते हैं बड़ी ही कला के साथ—
चेहरे पर ऐसी उदासी जैसे दुनिया वहीं खत्म हो जाएगी,
या फिर “अर्जेंट पैसे चाहिए, तुरंत लौटा दूँगा”,
या “बस उससे लेकर सीधे तुझे दे दूँगा” वाला उनका मशहूर संवाद।
और फिर… समय गुजरता है, गुजरता है, और बस गुजरता ही रहता है। 😀
पहला व्यवहार:
अगर साहब आपके पड़ोस के हों, तो जैसे ही आपको देखते हैं, ऐसे खिसक जाते हैं जैसे चोरी करते पकड़े गए हों—
ये जाने बिना कि आपने उन्हें पहले ही पहचान लिया है।
ध्यान रहे—मैं किसी की मजबूरी या गरीबी का मज़ाक नहीं उड़ा रहा। सच्चाई ये है कि ज्यादातर समय उनके पास पैसे होते हैं, बस आपको लौटाने का मन नहीं होता।
दूसरा व्यवहार:
अगर जिसे आपने उधार दिया था, वह कभी आपका ग्राहक भी रह चुका हो, तो समझ लीजिए कि आपने उस पर एहसान करके अपने ही सिर घाटा बाँध लिया है।
आपने उसके बुरे समय में मदद की—उसके बदले धन्यवाद तो छोड़िए, वह आपसे ग्राहक-विक्रेता वाला रिश्ता ही खत्म कर देता है और कहीं और का ग्राहक बन जाता है, सिर्फ इसलिए कि कहीं आप उससे पुरानी उधारी के पैसे न माँग लें।
एहसान की परिभाषा शायद यही है—एहसान लो, और रिश्ता तोड़ दो।
तीसरा व्यवहार:
अगर आप लोगों की नज़रों में “बहुत अच्छे इंसान” हैं, तो उधार दिया हुआ पैसा माँगते हुए आपको ही शर्म आने लगती है।
अच्छा बनने की कीमत यही है—आपको ही डर लगता है कि कहीं कोई आपको गलत न समझ ले।
पर सामने वाले महानुभाव?
उन्हें तो पैसे लौटाने का मन ही नहीं होता—जैसे वो पैसे मानो शुरू से ही उनके ही थे।
आख़िरकार आपको कठोर होना ही पड़ता है।
और ऐसे वक्त में ये पंक्तियाँ कलेजे पर चोट करती हैं—
“कुछ इस तरह ज़िंदगी ने मुझसे सौदा किया,
तजुर्बे देकर मुझसे मेरी मासूमियत ले गया।”
चौथा व्यवहार:
ये वर्ग सबसे रोचक है।
इस वर्ग के लोग बड़े विश्वास से कहते हैं—“हाँ, हाँ… तेरे पैसे देने हैं, मैंने लिख लिए हैं।”
ओ भाई, कहाँ लिखे हैं? किस ग्रंथ में?
और अगर लिखे भी हैं तो क्या वो डायरी त्रेता युग की है जो अब मिल ही नहीं रही?
“मैंने लिख लिया है” बोलने वाले लोग नियत-खराब श्रेणी में उच्च सम्मान रखते हैं।
पाँचवाँ व्यवहार:
ये महानुभाव अक्सर नशे या जुए की दुनिया से गहरा नाता रखते हैं।
अगर आपका उधार लिया पैसा इन्होंने मौज-मस्ती में उड़ा दिया—तो थोड़ी-बहुत टोका-टाकी पर लौटाने की कोशिश कर भी देंगे।
लेकिन अगर वही पैसा जुए में हार गए—तो समझ लीजिए अब आपका पैसा वापस मिलना लगभग असंभव है।
और अगर देंगे भी तो आधा, जैसे हारने की आधी जिम्मेदारी आपकी रही हो!
छठा व्यवहार:
“अर्जेंट कॉल करनी है यार, शाम तक लौटा दूँगा”—
इस बहाने वे आपसे रिचार्ज करवा लेते हैं।
रिचार्ज हो जाता है।
उनकी बातें शुरू।
और आप?
आपसे उनकी बातचीत बंद।
फिर वे तभी बोलते हैं जब उन्हें यकीन हो जाए कि आप उनकी रिचार्ज वाली कहानी भुला चुके हैं।
सातवाँ व्यवहार:
कुछ लोग उधार तो ले लेते हैं, और थोड़े समय बाद उनके पास उधार चुकाने लायक पैसे भी आ जाते हैं,
लेकिन फिर भी वापस नहीं करते।
ऊपर से आपसे हमेशा के लिए संबंध ही खत्म कर देते हैं—
कहीं ऐसा न हो कि आप उनसे अपने पैसे माँगना शुरू कर दें!
ये तब ज़्यादा होता है जब रकम बड़ी हो।
नियत खराबी का ये वो स्तर है जहाँ मदद करने वाला ही गुनहगार बना दिया जाता है।
आठवाँ व्यवहार:
जब परेशान थे तब आपसे उधार लिया।
अब हालात सुधरे, तो आपके पैसे लौटाने के बजाय नए-नए ब्रांडेड सामान खरीदे जा रहे हैं।
आपके दिए पैसे?
उनकी नज़र में अब “आउटडेटेड” हो चुके हैं—उन्हें लौटाना उनकी शान के खिलाफ है।
नौवाँ व्यवहार:
अगर आप जानते हुए भी कि सामने वाले की नियत ठीक नहीं, और वे कोई वस्तु माँगें तो आप उसे उधार देने के बजाय फ्री में ही दे दें,
और वे उसे तुरंत मुस्कुराकर रख लें—
तो उनकी उस मुस्कान में छिपी नियत खराबी साफ दिखाई देती है।
और उन महानुभावों को लगता है कि अब आपकी दया के कारण उनकी दोस्ती आपसे हमेशा के लिए कायम रहेगी।
दसवाँ व्यवहार:
जब ये गरीब थे, तब आपसे उधार लिया और पैसे होने पर भी लौटाए नहीं।
अब वक्त बदल गया—साहब अमीर हो गए हैं,
लोगों पर खूब खर्च कर रहे हैं, बड़े दिल वाले कहलाते हैं।
पर सच ये है—अमीरी सिर्फ इनके भीतर छिपी नियत खराबी को ढक देती है।
वो तो वही हैं जो थे—बस कपड़े और अकड़ बदल गई।
और भी कई पहचानें हैं ऐसे महानुभावों की—
- आप उधार के पैसे माफ कर दें और वे हल्की-सी औपचारिक मनाही के बाद मुस्कुरा कर चुप हो जाएँ।
- आप कोई चीज़ फ्री दे दें और वे दो सेकंड की दिखावटी मनाही के बाद उसे खुशी से रख लें।
- आप उधार माँगना बंद कर दें और वे ऐसे व्यवहार करें जैसे उधारी का मामला कभी हुआ ही नहीं।
- आप उधार दें और वे लौटाने के बजाय अचानक मौन-व्रत धारण कर लें।
- आप किसी काउंटर पर भुगतान करने लगें, और महानुभाव ठीक उसी समय वहाँ से गायब हो जाएँ।
निष्कर्ष:
तो ये थी नियत खराब आदमी की उधारी और उसके बहुरूपी व्यवहार की दास्तान।
अगर आपको ऐसे लोग सच में मिले हैं, तो मेरी मानिए—दूरी ही सबसे बड़ा इलाज है।
दुनिया में अच्छे लोग भी हैं, भले कम हों।
और अगर ऐसे लोग आसपास न मिलें, तो अकेले या अपने परिवार के साथ रहना ही बेहतर है।
क्योंकि मेरा मानना है—
नियत खराब आदमी के साथ रहना किसी मुर्दे के साथ रहने जैसा है।
मुर्दा दिल आदमी अगर मजबूरी में आप पर खर्च भी कर दे,
तो मन में सिर्फ नेगेटिव वाइब्स ही छोड़ता है।
