कौन है जो गिरते से बचाता है?
Nostalgiaएक रात मैं अपने कमरे में दीवान पर सोया हुआ था। यह रात बाकी रातों जैसी ही थी। उस दिन न कोई ख्वाब था और न ही कोई बेचैनी। मैं बेसुध सो रहा था।
शायद एक-दो घंटे ही सोया था कि अचानक मुझे एक झटका सा महसूस हुआ — और मैं जाग गया।
वह क्षण
मुझे वह एक क्षण आज भी साफ़-साफ़ याद है — जब एहसास हुआ कि मैं दीवान से गिर रहा हूँ, और अगले ही पल मैंने तेज़ी से करवट लेकर खुद को बचा लिया।
मैं नींद में करवट बदल रहा था और इस बात से अनजान था कि मैं नीचे ठोस ज़मीन पर गिरने वाला हूँ।
पर तभी जैसे किसी ने मेरी रूह के भीतर से कहा हो —
“मोड़ लो अपना रुख... नीचे गिरने से बच जाओगे।”
जागते हुए भी मुझे वह नींद का पल याद है —
जब मैं सचमुच गिर रहा था, और ठीक उसी समय मैंने खुद को गिरने से रोक लिया।
इसलिए झटका सा लगा और मैं गहरी नींद से उठ बैठा।
अजीब एहसास
हैरानी की बात यह थी कि नींद में ही मैंने खुद को दूसरी ओर मोड़ लिया — और उसी समय अचानक महसूस किया कि मैं तो गिरने ही वाला था।
उस समय जैसे कोई आंतरिक शक्ति मेरी रक्षा कर रही थी।
मैं चुपचाप लेटे-लेटे सोचता रहा —
यह क्या था? क्या यह मैं था या कोई और मेरे लिए जाग रहा था? क्या हम सोते हुए भी जागते हैं? या फिर ईश्वर ने हर इंसान के अंदर एक चौकीदार रखा है, जो नींद में भी उसकी हिफ़ाज़त करता है? 😃
कुछ लोग यह सोच सकते हैं कि शायद मुझे कोई ऐसा सपना आया होगा—
जैसे हम कभी-कभी ख्वाब में देखते हैं कि हम ऊँचाई से गिर रहे हैं,
और घबराकर अचानक उठ जाते हैं।
लेकिन एक बात बिल्कुल साफ़ कर दूँ—
ऐसा कुछ भी नहीं था।
यह सपना नहीं था।
उस दिन मुझे कोई ख्वाब नहीं आया था।
मैं सचमुच गिरने वाला था।
और यह बात आप मेरे आगे के शब्दों से खुद समझ जाएंगे।
हुआ ये कि उस समय सर्दियों का मौसम चल रहा था।
मेरा दीवान, जिस पर मैं सोता था,
हमेशा कमरे की बाईं तरफ़ की दीवार से बिलकुल सटा रहता था।
दाईं तरफ़ की दीवार पर मेरा कंप्यूटर टेबल लगा हुआ था।
ठंड इतनी बढ़ गई थी कि डेस्क चेयर पर बैठना मुश्किल हो गया था।
कई बार कंबल ओढ़कर कंप्यूटर चलाता,
लेकिन उस वक्त की सर्दी में तो कंबल भी बेअसर लगने लगा था।
एक रात मैं वेब-डेवलपिंग से जुड़ा एक ज़रूरी काम कर रहा था,
लेकिन ठंड से हाथ सुन्न हो रहे थे।
मैंने चेयर को साइड में किया
और दीवान को खींचकर कमरे के लगभग बीच में लगा दिया—
ठीक कंप्यूटर टेबल के पास।
अब मैं दीवान पर बैठकर रज़ाई ओढ़कर आराम से कंप्यूटर चला सकता था।
लेकिन अब एक ध्यान देने वाली बात थी—
अब दीवान बाईं दीवार से काफी दूर हो चुका था।
मतलब, नींद में करवट लेते ही बाईं तरफ़ गिर जाने का ख़तरा उसी दिन था।
और हुआ भी यही।
उसी रात, अचानक हड़बड़ाकर मैं उठा—
क्योंकि मैं सचमुच नीचे गिरने वाला था।
हाथ बाहर लटक चुका था।
वज़न झुक चुका था।
बस एक सेकेंड और… मैं फर्श पर होता।
यानी बात बिल्कुल साफ़ है—
वह कोई सपना नहीं था।
मैं उसी रात गिर सकता था,
इसीलिए यह घटना उसी दिन घटी।
और यह बात तो सोचने वाली है ही—
मैं गिरा तो नहीं था,
पर ठीक उसी पल, जब मैं गिरने वाला था,
मैं घबराकर अचानक उठ बैठा।
पर कभी-कभी ऐसा भी होता है कि मैं दिन या शाम को अचानक सोने ही वाला होता हूँ,
और नींद आते ही अचानक मेरी आँख खुल जाती है,
बिना शोर, बिना किसी के जगाए—
जैसे कोई चाहता हो कि मैं अभी न सोऊँ।
जैसे मानो हम कुछ और चाहते हैं,
और कोई और… कुछ और।
इस लेख को अंत तक पढ़ने के लिए शुक्रिया।
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