जब सोनू और उसके दोस्त का हुआ अद्भुत, अविश्वसनीय और अकल्पनीय घटनाओं से सामना

जब सोनू और उसके दोस्त का हुआ अद्भुत, अविश्वसनीय और अकल्पनीय घटनाओं से सामना

Ghibli-style illustration inspired by Shabbir Khan’s life and writings

इन कहानियों का मक़सद डर फैलाना नहीं,
बल्कि उन घटनाओं की तह तक पहुँचना है
जो हमारे सामने तो आती हैं, पर समझ से परे रह जाती हैं।

हर कहानी एक अनुभव है,
जो इंसान और अदृश्य दुनिया के बीच की उस पतली परत को छूती है,
जिसे हम “संयोग” या “भ्रम” कहकर नज़रअंदाज़ कर देते हैं।

पर जो इन अनुभवों से गुज़रे हैं,
वे जानते हैं —
भ्रम और वास्तविकता के बीच का फ़ासला
कभी-कभी बस एक साँस की दूरी पर होता है।

सोनू — एक साधारण ज़िंदगी जीने वाला शख्स,
पर असाधारण घटनाओं का गवाह।

उसके जीवन में जो घटा,
वह इतना अद्भुत, अविश्वसनीय और अकल्पनीय था कि
उसे शब्दों में बाँधना आसान नहीं था,
और हैरानी की बात यह भी रही कि
ऐसा उसके साथ केवल एक ही बार नहीं हुआ था।

ये तीन असाधारण घटनाएँ
उसकी यादों में हमेशा के लिए दर्ज हो गईं —
कभी डर के रूप में,
कभी रहस्य के रूप में,
और कभी किसी अनकहे संकेत के रूप में।

अगर आप सोचते हैं कि
अंधेरा सिर्फ़ रोशनी की अनुपस्थिति है,
तो इन कहानियों को पढ़ने के बाद
आपका यह विश्वास शायद टूट जाएगा।

क्योंकि कभी-कभी
जो हमें दिखता है,
वो सच नहीं होता —
और जो सच होता है,
वो दिखता नहीं।


🕯️ कहानियों की शुरुआत…

1. “आख़िर कौन था वो…”

सोनू दिनभर के काम से थककर घर लौटता है। अकेलेपन से बचने के लिए वह रसोई में चिकन कोरमा बनाने का फैसला करता है। घंटों की मेहनत और थकान के बाद खाना तैयार हो जाता है। खाना खाकर जब वह बिस्तर पर लेटता है, थोड़ी ही देर बाद उसे अचानक एहसास होता है—कोई उसे दबोचे हुए है।

क रात, सोनू अपना काम निपटा कर थका-हारा घर लौट रहा था।
रास्ते में उसके मन में ख्याल आया, “क्यों न आज घर पर चिकन बना लूँ?”
बीवी मायके गई हुई थी और बच्चे भी साथ नहीं थे।
घर में पसरा सन्नाटा उसे और भी अकेला महसूस करा रहा था।
मन ही मन उसने सोचा—“आज कुछ नया करना चाहिए। इससे अकेलेपन का एहसास भी कुछ कम होगा।”

उसने अपनी मोटरसाइकिल चिकन सेंटर की ओर मोड़ी,
वहाँ से चिकन लिया और घर लौट आया।

रात गहराती जा रही थी।
घर पहुँचकर उसने नहाने-धोने की तैयारी की।
थकान के बावजूद वह खुश था कि आज रसोई खुद सँभालेगा।
“रात अब अपनी है,” उसने मन में कहा।
“जब बच्चे नहीं हैं, तो खाना देर से बने तो क्या ही फर्क पड़ता है।”

नहाने के बाद उसने आटा गूँधा, रोटियाँ बनाई और उन्हें डिब्बे में रख दिया।
अब बस एक ही काम बचा था — चिकन कोरमा बनाना।

सोनू और उसकी बीवी, दोनों ही खाना बनाने में माहिर थे — या यूँ कहें कि बेहतरीन रसोइये थे।
जब भी वे नॉनवेज बनाते, तो उसमें मूँगफली, नारियल का पेस्ट, केवड़ा वॉटर और खास मसालों का ऐसा मेल डालते, जो स्वाद में चार चाँद लगा देता था।

उस रात भी सोनू ने उसी अंदाज़ में कोरमा बनाना शुरू किया।
चिकन मेरिनेट किया,
प्याज़, लहसुन, अदरक और उन ख़ास मसालों की खुशबू से पूरा घर महक उठा।

थोड़ी देर बाद वह बाहर निकला तो देखा—
पड़ोसी मुस्कुराते हुए उससे कह रहे थे,
“क्या बात है, सोनू! बहुत बढ़िया खुशबू आ रही है। क्या बन रहा है?”

यूँ ही कुछ हँसी-मज़ाक और बातें होती रहीं,
और बातचीत खत्म होते ही सोनू खाना खाने के लिए तैयारी करने लगा।

उसने सारा खाना और बर्तन बिस्तर पर रखे—
और वहीं बैठकर खाने लगा।

दिनभर की मेहनत और रसोई की मशक्कत के बाद
वह बेहद थक चुका था।

खाना स्वादिष्ट था—इतना कि उसकी आत्मा तक तृप्त हो गई।
थकान इतनी थी कि उठने का मन नहीं हुआ। वही बर्तन खिसकाए,
चिकन की हड्डियाँ उसने खिड़की से बाहर फेंक दी थी और वही हाथ धोकर तुरंत बिस्तर पर लेट गया।

बस थोड़ा करवट लेकर लेटा ही था कि वह गहरी नींद में डूब गया।

पर तभी—
अचानक उसकी आँखें खुलीं और उसे एहसास हुआ कि कोई उसे दबोचे हुए हैं।

उसने मन ही मन घबरा कर कहा—
“आज तो किसी ने मुझे पकड़ लिया!”

कौन है यह जानने के लिए वह घबरा कर पीठ के बल सीधा लेट गया,
और देखा—एक 12–13 साल का खूबसूरत लड़का उससे हाथापाई कर रहा है!

सोनू ने भी उसके हाथ पकड़ने की कोशिश की,
तो उसकी उंगलियाँ सोनू के हाथों में आ गईं।
सोनू घबरा गया—
“उसकी उँगलियाँ… बहुत लंबी थीं,
सामान्य से लगभग दुगनी।”

फिर उसने सोनू के हाथ पकड़ लिए।

सोनू गुस्से में बोला—
“हाथ पकड़ने से क्या होगा? मुँह तो है मेरा…”

बस इतना सुनते ही वह लड़का अपनी एड़ी सोनू के मुँह में घुसेड़ने लगा।

काफी देर तक संघर्ष चलता रहा।
और फिर वह लड़का अचानक आंखों से ओझल हो गया।

सोनू हैरान रह गया—
लाइट जल रही थी,
दरवाज़ा अंदर से बंद था।
कोई रास्ता नहीं था कि कोई अंदर आए या बाहर जाए।
तो फिर… वह कौन था?
कहाँ से आया और आख़िर कैसे गायब हो गया?

डर से काँपता सोनू पूरी रात सो नहीं सका।
घबरा कर उसने नक्श-ए-हिफाज़त को अपने सीने से लगाकर रख लिया।
पर डर उसके दिल और दिमाग से निकल नहीं रहा था।

गहरी नींद और गहरा डर आपस में टकरा रहे थे।
वह चाह कर भी सो नहीं पा रहा था।

उसने तय किया—
“अब मैं तभी सोऊँगा जब अज़ान होगी।”

घड़ी की टिक-टिक और समय मानो थम सा गया।
वह बेचैनी से सुबह का इंतजार करता रहा।
इंतजार… इंतजार… और दिल में बसा एक खौफनाक डर—
कहीं वह फिर से न आ जाए।

आख़िरकार अज़ान की आवाज़ आई—
और उसका डर धीरे-धीरे कम होता गया।
थोड़ी ही देर बाद वह गहरी नींद में खो गया।

जब जागा, तो उसे एहसास हुआ कि काफी समय बीत चुका था।
घर से बाहर निकलते ही मानो डर उससे कोसों दूर भाग गया।

दिन के उजाले में फिर उसने अपने दोस्तों और परिचितों को सारी बात बताई।

किसी ने कहा—“तुम्हें इतनी रात में चिकन नहीं बनाना चाहिए था।”
किसी ने कहा—“रात में हड्डियाँ खिड़की से नहीं फेंकनी चाहिए थीं।”
और किसी ने कहा—“जब हम गोश्त खाते हैं, तो हड्डियों पर थोड़ा गोश्त लगा छोड़ देना चाहिए।”

उस घटना की वजह चाहे जो भी रही हो—
सोनू आज तक असल वजह नहीं जान पाया कि आख़िर वह कौन था, कहाँ से आया था और मुझसे आख़िरकार किस चीज़ का बदला ले रहा था…



2. “दोस्ती या एक साज़िश”

सोनू घर लौटते समय रेलवे पटरी के पास अपने पुराने दोस्त की जानी-पहचानी आवाज़ सुनता है। खुशी से वह उससे बातें करने लगता है और पटरी पर बैठ जाता है। तभी अचानक एक अजनबी आदमी दौड़ता हुआ आता है, सोनू को झटके से खींचकर ट्रेन की चपेट से बचा लेता है—और फिर कहता है, “यहाँ कोई दोस्त नहीं था।”

ह घटना उस समय की है जब सोनू दूर कहीं खेरी इलाके के आस-पास काम कर रहा था।
दिनभर का काम निपटाकर वह अब घर लौट रहा था।

जब वह रेलवे की पटरियों के पास से गुजर ही रहा था, तभी अचानक उसके कानों में एक जानी-पहचानी आवाज़ पड़ी—

“और सुनाओ, सोनू भाई! कहाँ हो आजकल?”

सोनू ने ध्यान से देखा—
अरे, यह तो वही पुराना दोस्त है, आदिवासी, जिसके साथ वह कभी काम कर चुका है!
वही कैप, वही खुशमिजाज चेहरा, वही अंदाज़ और वही बातें।

सोनू खुश होकर बोला—
“अबे, तू! कितने दिन बाद मिल रहा है!”

दोनों बातें करने लगे।
दोस्त ने पटरी की तरफ इशारा करते हुए, पटरी पर हाथ पटका—“आओ, बैठो।”

सोनू ने मना किया—
“नहीं यार, यहाँ नहीं। ट्रेन आ जाएगी।”

दोस्त बोला—
“अरे नहीं, अभी कोई नहीं आ रही।”

सोनू ने भी शायद यही सोचा—अगर ट्रेन आई, तो पता चल ही जाएगा,
और वह भी पटरी पर बैठ गया।

दोनों पुराने दिनों की बातें करने लगे।
कितने प्रोजेक्ट्स साथ किए थे,
कैसे हँसी-मज़ाक में दिन गुज़रते थे…

थोड़ा ही समय बीता था कि तभी—

एक अजनबी शख़्स गुस्से में वहाँ दौड़ता हुआ आया,
और अपशब्द कहते हुए उसने सोनू का हाथ पकड़कर उसे पटरी से दूर फेंक दिया!

सोनू गुस्से में कुछ कहने ही वाला था कि तभी उसने देखा—
ट्रेन तेज़ हॉर्न बजाते हुए, गरजती आवाज़ के साथ धड़धड़ाती हुई उसी पटरी पर से गुजर रही थी।

सोनू स्तब्ध रह गया।
अगर वह आदमी न होता,
तो वह कब का ट्रेन की चपेट में आ चुका होता।

सोनू ने चारों ओर देखा—
“अरे, मेरा दोस्त कहाँ गया?”

आदमी ने कहा—
“कौन सा दोस्त? यहाँ कोई दोस्त नहीं था।
मैं तो बहुत पहले से तुझे अकेले ही बात करते देख चुका हूँ।”

उस आदमी ने कई बार सोनू को वहाँ बैठने से रोकने के लिए आवाज़ दी,
पर सोनू ने कुछ सुना ही नहीं।
आदमी हैरान था कि वह किससे बातें कर रहा है।
ट्रेन की आवाज़ सुनते ही उसने तुरंत सोनू की तरफ देखा—सोनू वहीं था।

सोनू को यकीन नहीं हुआ।
वह बार-बार इधर-उधर देखने लगा,
पर उसका दोस्त कहीं नहीं मिला।

आदमी ने सोनू से कहा—
“ऐसा कर, अब तू घर जा।
यहाँ कोई नहीं था।
तू अकेला ही था, मेरी आवाज़ तक नहीं सुन रहा था।”

सोनू चुपचाप घर चला आया।
रातभर यही सोचता रहा—
क्या सच में मेरा दोस्त ट्रेन से कट गया?
वह, जब इतनी गर्मजोशी से बात कर रहा था,
फिर मुझसे बिना मिले, बिना कुछ कहे अचानक कहाँ चला गया?
क्या उस आदमी की बात सही थी, पर मेरा दोस्त तो सच में वहाँ था।

उसका मन बेचैन रहा,
हर पल उसी सोच में डूबा रहा।

आख़िरकार समय बीता…

एक दिन, जब सोनू उन्हीं साथियों के साथ काम कर रहा था,
जिनके साथ वही दोस्त भी कभी शामिल रह चुका था,
सोनू ने अचानक पूछा—
“क्यों, वह अपना दोस्त कहाँ है आजकल? वह 'आदिवासी', जो कैप पहनता था?”

साथियों ने चौंककर कहा—
“क्यों, तुझे पता ही नहीं चला अभी तक? वह तो तीन-चार महीने पहले ही मर गया।”

सोनू के शरीर में सिहरन दौड़ गई।
और एक पल के लिए पूरा माहौल बदल गया।

सोनू — जिससे वह कुछ ही समय पहले रेल की पटरी पर बैठकर बातें कर चुका था —
वह तो तीन-चार महीने पहले ही मर चुका था।

यह घटना पैरानॉर्मल एक्सपर्ट्स की उन बातों को सच मानने पर मजबूर कर देती है,
कि भूत अक्सर समूह में रहना पसंद करते हैं।
कई बार जो लोग उन्हें भाते हैं, उन्हें वे अपने साथ करना चाहते हैं।

कुछ विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि प्रेतात्माओं में एक तरह की वशीकरण-सी शक्ति होती है,
जो कुछ विशेष इंसानों को अपने मोहपाश में बाँध लेती है।

शायद तभी, उस दिन —
सोनू को ट्रेन की वह तेज़, गर्जनभरी आवाज़ तक सुनाई नहीं दी।



3. “छलावा एक, नज़रिए दो”

सोनू और उसका दोस्त रात में एडवेंचर करते हुए रास्ते में एक मेमना देखते हैं। सोनू को वह एक साधारण जानवर लगता है, लेकिन बाद में उसका दोस्त बताता है कि वह दरअसल एक छलावा था — जो किसी भी जानवर या इंसान का रूप ले सकता है। आगे वह बताता है कि उसने उस मेमने को पूरी तरह जला हुआ देखा था।

ह उन दिनों की बात है जब सोनू और उसके दोस्त
एडवेंचर के नए-नए बहाने ढूँढा करते थे—
कभी मछली पकड़ने निकल जाते,
तो कभी रात में नदी किनारे कैंपिंग किया करते।

वहीं कुछ बनाते, वहीं कुछ खाते।

ऐसी ही एक रात—
सोनू और उसका दोस्त एडवेंचर से भरे, वीरान रास्तों से गुजर रहे थे।
रात का सन्नाटा, चाँदनी की हल्की चमक,
और झाड़ियों की सरसराहट—
सब मिलकर उस रात को और भी रहस्यमयी और रोमांचक बना रहे थे।

चलते-चलते सोनू ने देखा—
सामने एक छोटा-सा मेमना खड़ा था, मानो किसी का इंतज़ार कर रहा हो।

सोनू हैरानी से बोला—
“इतने वीराने में यह मेमना यहाँ क्या कर रहा है?
इसे घर ले चलते हैं।”

उसकी बातों में उसके दोस्त को कुछ अजीब-सा लगा।
वह कुछ पल चुप रहा।
उसे लगा जैसे कुछ ठीक नहीं है—
फिर भी उस वक़्त उसने कुछ नहीं कहा, बस धीमी आवाज़ में बोला,
“चल...”

दोनों घर लौट गए।
रात गुज़र गई।

जब अगली बार मुलाकात हुई,
तो उसके दोस्त ने सोनू से बड़बड़ाते हुए कहा—
“तुझे पता भी है, वो क्या था?”

सोनू चौंक पड़ा—“क्या मतलब?”

वह बोला—
“वो कोई मेमना नहीं था…
वो छलावा था!
जो किसी भी जानवर या इंसान का रूप ले सकता है।”

सोनू चौंक गया।
दोस्त ने आगे कहा—
“क्या तूने नहीं देखा था कि वह पूरा जला हुआ था?
उसके बाल झुलसे हुए थे,
और उसमें से जलने की गंध आ रही थी?”

दोस्त की पूरी बातें सुनने के बाद सोनू निःशब्द रह गया।
उसे वह पुरानी कहानियाँ याद आ गईं—
जहाँ जिन्न जानवरों का रूप लेकर
इंसानों को डराते या भ्रम में डालते है।

उस रात सोनू के दोस्त को तुरंत समझ आ गया था कि वह क्या था।
इसी वजह से सोनू अगली मुलाकात में समझ पाया कि आख़िर उसका दोस्त उस रात उस मासूम जानवर को घर क्यों नहीं ले जाना चाहता था।
क्योंकि वह मेमना दोनों को अलग-अलग रूप में दिख रहा था—
एक को जला हुआ, और एक को सामान्य स्थिति में।

उस रात भले ही सोनू को वह मेमना सामान्य लग रहा था,
लेकिन दोस्त की बातों ने उसे यकीन दिला दिया कि
यह किसी डरावनी चाल के सिवा कुछ नहीं था।

समय बीतता गया।
सोनू को अब समझ आ गया था कि ये घटनाएँ सिर्फ़ डर नहीं हैं — बल्कि किसी गहरे इशारे का हिस्सा हैं।
जैसे कोई अनदेखी ताक़त उसे यह जताना चाहती हो कि —
प्रेत-आत्माओं और जिन्नों की दुनिया वाक़ई मौजूद है।

सिर्फ़ सोनू ही नहीं, बल्कि उसके खानदान के कई लोगों का
इन रहस्यमय घटनाओं से कभी-न-कभी सामना हो चुका था।

अक्सर देखा गया है कि किसी परिवार में यदि एक सदस्य में
प्रेत-आत्माओं को देखने या महसूस करने की क्षमता होती है,
तो वही शक्ति समय के साथ परिवार की अगली पीढ़ियों में भी उतर आती है।

ऐसा क्यों होता है?
इसका जवाब मुझे पहली बार “A Haunting” नाम के एक शो से मिला,
जो बहुत पहले Discovery Channel पर आता था — Zee TV के “Fear Files” से भी पहले।

उस शो में कई पैरानॉर्मल एक्सपर्ट्स ने कहा था —
कुछ लोगों के पास जन्मजात क्षमता होती है:
आत्माओं को देख पाना,
उनसे संवाद कर पाना,
या उनके अधूरे जीवन की गूंज महसूस कर पाना।

खासकर विदेशों में, जिन लोगों के भीतर यह शक्ति होती है,
वे अक्सर उन पैरानॉर्मल टीमों का हिस्सा बन जाते हैं,
जो लोगों को ऐसी आत्माओं से मुक्ति दिलाने का काम करती हैं।

एक रात, सोनू के पूरे परिवार ने घर में
एक विशाल, डरावनी आकृति देखी थी —
वह आकृति इतनी भयानक थी कि उसके पापा अचानक ज़ोर से चीख पड़े थे।

सोनू के चाचा भी पैरानॉर्मल एक्सपर्ट रह चुके हैं।
एक रात, जब वे अपने परिवार और संबंधियों के साथ जीप में सवार होकर
किसी गाँव की शादी में जा रहे थे,
तो बीच रास्ते सुनसान इलाक़े में अचानक उनकी जीप रुक गई।

उसी वक़्त, घने अंधेरे में से कुछ भटके हुए लोग
जीप के पास आए और ड्राइवर से रास्ता पूछने लगे।

ड्राइवर कुछ कह पाता, उससे पहले ही
चाचा ने उसे धीमी आवाज़ में कहा — “कुछ नहीं... बस चलो।”

लेकिन ड्राइवर ने उनकी बात अनसुनी कर दी,
और उन लोगों को रास्ता बताने लगा।

तभी चाचा ने जेब से माचिस निकाली,
एक तीली जलाई —
और जैसे ही लौ ने अंधेरे को चीरते हुए उन चेहरों को छुआ,
वे सब... पल भर में गायब हो गए।

वे भटके हुए लोग नहीं,
बल्कि भटकती आत्माएँ थीं।


समाप्त।


इस पोस्ट में सोनू के साथ घटी असाधारण घटनाओं का ज़िक्र किया गया है — जिन पर मेरा और आपका नज़रिया अलग-अलग हो सकता है। इस लेख का असल मकसद यही है कि हम किसी भी विषय को नकारने के बजाय उसकी तह तक जाकर उन अद्भुत, अविश्वसनीय और अकल्पनीय घटनाओं को समझने की कोशिश करें, जो हमारे तर्क से परे होते हुए भी किसी न किसी रूप में हमें सोचने पर मजबूर कर देती हैं।