अपनी ही आवाज़ रिकॉर्डिंग में अजीब क्यों लगती है?

अपनी ही आवाज़ रिकॉर्डिंग में अजीब क्यों लगती है?

Ghibli-style illustration inspired by Shabbir Khan’s life and writings

कई लोगों के लिए यह एक अजीब और परेशान करने वाला अनुभव होता है।
जब वे सामान्य बातचीत में बोलते हैं, तो उन्हें अपनी आवाज़ बिल्कुल ठीक लगती है।
लेकिन जैसे ही वे अपनी ही रिकॉर्ड की हुई आवाज़ सुनते हैं,
उन्हें वही आवाज़ अजनबी, अटपटी या कभी-कभी बेहद खराब लगने लगती है।

कुछ लोगों के लिए यह सिर्फ़ हैरानी की बात होती है,
तो कुछ के लिए शर्म और झिझक का कारण बन जाती है।
इसका एक जीता-जागता उदाहरण मैंने इंस्टाग्राम की एक रील में देखा था,
जहाँ एक रील क्रिएटर मज़ाकिया लेकिन उदासी भरे अंदाज़ में कह रहा था—

“आज जब खुद की आवाज़ रिकॉर्डिंग में सुनी,
तो लगा कि अब तक जिन-जिन लोगों से मैंने बात की है,
उन सब से माफ़ी माँग लूँ।”

वह रील सिर्फ़ एक मज़ेदार क्लिप नहीं थी,
बल्कि उस एहसास की अभिव्यक्ति थी
जिससे बहुत से लोग भीतर ही भीतर गुज़रते हैं।
इसी वजह से अक्सर मन में यही सवाल उठता है—
क्या मेरी आवाज़ सच में ऐसी ही है?

इस सवाल का जवाब समझने के लिए यह जानना ज़रूरी है
कि हम अपनी आवाज़ को कैसे सुनते हैं,
और रिकॉर्डिंग में वही आवाज़ अलग क्यों लगती है।

1. यह समस्या असल में क्या है?

जब हम बोलते हैं, तो अपनी आवाज़ हमें बिल्कुल सामान्य लगती है।
लेकिन रिकॉर्डिंग सुनते समय वही आवाज़ अजीब लगने लगती है।

यह इसलिए नहीं होता कि आवाज़ खराब है,
बल्कि इसलिए कि दिमाग को वैसी आवाज़ सुनने की आदत नहीं होती।

यह एहसास पूरी तरह सामान्य है।
लगभग हर इंसान को अपनी रिकॉर्ड की हुई आवाज़
कभी न कभी अटपटी या “बुरी” लगती है।

2. हम अपनी आवाज़ कैसे सुनते हैं?

जब आप खुद बोलते हैं,
तो आप अपनी आवाज़ को दो रास्तों से सुनते हैं।

एक, हवा के ज़रिए—जिसे Air Conduction कहते हैं।
दूसरा, खोपड़ी की हड्डियों के ज़रिए—जिसे Bone Conduction कहा जाता है।

Bone conduction आपकी आवाज़ में
depth, bass और softness जोड़ देता है।
इसी वजह से जब आप खुद बोलते हैं,
तो आपकी आवाज़ आपको ज़्यादा भारी, साफ़ और बेहतर लगती है।

यही वह आवाज़ होती है,
जिसकी आपके दिमाग को बचपन से आदत पड़ चुकी होती है।

3. रिकॉर्डिंग में आवाज़ अलग क्यों लगती है?

रिकॉर्डिंग सुनते समय bone conduction शामिल नहीं होता।
आप अपनी आवाज़ को सिर्फ़ हवा के ज़रिए सुनते हैं।

इसी कारण रिकॉर्डिंग में आपकी आवाज़
थोड़ी पतली, ऊँची और कम भराव वाली लगती है।
वह “खुद जैसी” नहीं लगती।

यहीं पर दिमाग तुरंत प्रतिक्रिया देता है—
“ये मैं कैसे हो सकता हूँ?”

और इसी क्षण
अजीबपन और शर्म का एहसास शुरू हो जाता है।

4. रिकॉर्डिंग सुनकर शर्म क्यों आती है?

रिकॉर्डिंग में आपकी आवाज़
बिल्कुल सीधी और बिना किसी परत के सामने आती है।
जबकि आपका दिमाग सालों से
bone conduction के साथ मिली हुई आवाज़ सुनता आया है।

इन दोनों के बीच का फर्क
दिमाग “गलत” मान लेता है।
इसीलिए आपको लगता है—
मेरी आवाज़ खराब है।

जबकि सच्चाई यह है कि
आपकी आवाज़ ऐसी ही सबको सुनाई देती है,
और वह बिल्कुल सामान्य होती है।

5. इस एहसास से बाहर कैसे आया जाए?

ज़्यादातर लोग कुछ ही हफ्तों में
बार-बार अपनी आवाज़ सुनकर
इस एहसास के आदी हो जाते हैं।

धीरे-धीरे दिमाग
रिकॉर्डिंग वाली आवाज़ को भी
“अपनी आवाज़” मानने लगता है।

इस प्रक्रिया में मदद करता है—
थोड़ा अभ्यास,
थोड़ा धैर्य
और खुद को जज न करना।

6. एक अहम सच्चाई

आपकी आवाज़ में कोई कमी नहीं है।
बस आपके कानों ने आपकी असली आवाज़
कभी वैसे सुनी ही नहीं,
जैसे दुनिया सुनती है।

इसीलिए रिकॉर्डिंग वाली आवाज़
आपको अजनबी लगती है।

7. दूसरों की आवाज़ अजीब क्यों नहीं लगती?

क्योंकि दूसरों की आवाज़
हम हमेशा सिर्फ़ हवा के ज़रिए सुनते हैं।

उनकी लाइव और रिकॉर्डेड आवाज़
हमें लगभग एक-सी लगती है।
इसलिए दिमाग को कोई झटका नहीं लगता।

लेकिन अपनी आवाज़ के साथ
ऐसा नहीं होता।

8. शर्म आवाज़ की वजह से नहीं होती

अपनी आवाज़ पर जो शर्म महसूस होती है,
वह आवाज़ की गुणवत्ता की वजह से नहीं होती।

यह biology और psychology का मिला-जुला असर है।

अगर आपकी आवाज़ में सच में कोई बड़ी समस्या होती,
तो बातचीत में उसका असर ज़रूर दिखता।
लोग असहज होते,
या संवाद सहज रूप से नहीं चलता।

लेकिन ऐसा नहीं होता।

9. रिकॉर्डिंग आपकी पहचान नहीं है

रिकॉर्डिंग आपकी आवाज़ का
सिर्फ़ एक तकनीकी रूप होती है।

माइक की अपनी सीमाएँ होती हैं,
कमरे की echo आवाज़ को बदल देती है,
और मोबाइल माइक आवाज़ का भराव कम कर देता है।

इसलिए रिकॉर्डिंग में आवाज़
“कच्ची” लग सकती है।
लाइव में वही आवाज़
ज़्यादा असरदार होती है।

10. आख़िरी बात

अजीबपन आपकी आवाज़ में नहीं,
उसे सुनने के अनुभव में है।

जैसे शीशे और कैमरे में
एक ही चेहरा अलग दिखता है,
वैसे ही रिकॉर्डिंग में आपकी आवाज़ नई लगती है—
लेकिन दुनिया आपको इसी आवाज़ में सुनती है,
और उसे वह बिल्कुल सामान्य लगती है।

यही सबसे भरोसेमंद सच्चाई है।