हाइजीन बनाम सोच: क्या सिर्फ साफ सफाई ही काफी है?
Thoughtsहाइजीन, हाइजीन, हाइजीन…
आजकल यह शब्द हर जगह सुनाई देता है — सोशल मीडिया से लेकर रोज़मर्रा की बातचीत तक। खासकर जब बात स्ट्रीट फूड की हो।
वीडियो वायरल होते ही कमेंट सेक्शन में लोग तुरंत हाइजीन पर सवाल उठाते हैं:
– “छि! इसने हाथ नहीं धोए।”
– “दस्ताने क्यों नहीं पहने?”
– “बाल खुले हैं!”
विदेशी ब्लॉगर अगर भारतीय स्ट्रीट फूड का आनंद ले रहे हों, तो टिप्पणियाँ और भी तीखी हो जाती हैं — “कितना अनहाइजीनिक है!”
बेशक, खाना बनाते और परोसते समय स्वच्छता बहुत ज़रूरी है। साफ़ माहौल, ढकी हुई चीज़ें, स्वच्छ बर्तन, साफ़ पानी और ताज़ी सामग्री — ये सब स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य हैं।
लेकिन क्या हर तरीका जो आधुनिक हाइजीनिक कसौटियों पर खरा न उतरे, उसे “अस्वच्छ” कहा जा सकता है?
हर संस्कृति की अपनी भोजन परंपरा होती है। पुराने समय से लोग बिना दस्ताने और हेयरनेट के भी भोजन बनाते आए हैं। केवल आधुनिक उपकरणों और नियमों की कमी उस भोजन को अमान्य नहीं बनाती।
झूठा मत खाओ — सोच का क्या?
बचपन से हमें सिखाया गया — “किसी का झूठा मत खाना।”
यह स्वास्थ्य की दृष्टि से सही है। लेकिन कभी-कभी यह सोच इतना गहरा असर डाल देती है कि हम भावना और सामाजिकता को भी नजरअंदाज करने लगते हैं।
कुछ लोग मिलकर एक ही प्लेट में दाल-चावल नहीं खाते, लेकिन वही लोग बिरयानी परोसने पर झूठा-मूठा सब भूल जाते हैं।
इससे साफ़ होता है कि हमारी हाइजीन भावना अक्सर स्वाद, वर्ग और अवसर से तय होती है।
मक्खी और शहद: समान चीज़, अलग दृष्टिकोण
कई लोग यदि खाने में मक्खी बैठ जाए तो कहते हैं — “छि! गंदगी!”
लेकिन वही लोग शहद को बिना सोचे चाट लेते हैं, जबकि मधुमक्खी पूरे दिन फूलों से रस इकट्ठा करके उसमें अपनी लार मिलाकर छत्ते में शहद बनाती है।
सोचिए:
- चाय में मक्खी गिर जाए, इंसान पूरी चाय फेंक देता है।
- वही मक्खी घी में गिर जाए, लोग बस मक्खी निकाल देते हैं और घी फिर से इस्तेमाल कर लेते हैं।
यह सिर्फ हाइजीन नहीं, सुविधा और अवसर के अनुसार बदलती सोच है।
मक्खी वही है, पर बर्ताव अलग।
यानी, समस्या मक्खी में नहीं, हमारी सोच में है।
यीशु और असली शुद्धता
मत्ती 15:1–20 में कुछ फरीसी और शास्त्रियों ने यीशु से पूछा:
"तुम्हारे चेले खाना खाने से पहले हाथ क्यों नहीं धोते?"
यीशु ने उत्तर दिया:
"मनुष्य को अशुद्ध वह वस्तु नहीं बनाती जो उसके मुख में जाती है, बल्कि वह जो मुख से निकलती है — वही उसे अशुद्ध करती है।"
यानी, असली शुद्धता सिर्फ शरीर की नहीं, बल्कि मन, सोच और कर्म की होती है।
- साफ़ सोच
- संवेदनशील व्यवहार
- शुद्ध हृदय
यही असली हाइजीन है।
निष्कर्ष: थाली के साथ मन भी स्वच्छ रखें
- हाइजीन ज़रूरी है।
- स्वच्छ भोजन खाना चाहिए।
- लेकिन दूसरों की संस्कृति को समझना और उसका सम्मान करना भी ज़रूरी है।
- झूठा खाने से परहेज़ ठीक है, पर झूठी सोच से नहीं।
मक्खी पर नाक चढ़ाने से बेहतर है — पहले अपनी सोच का छत्ता साफ़ करें।
थाली की सफ़ाई के साथ मन की सफ़ाई भी उतनी ही ज़रूरी है।
