बेवजह VIP – शादी, दिखावा और ‘Attitude Class’ की सच्चाई

बेवजह VIP – शादी, दिखावा और ‘Attitude Class’ की सच्चाई

Ghibli-style illustration inspired by Shabbir Khan’s life and writings

कुछ लोग अलग ही कॉन्फिडेंस लेवल पर जीते हैं —
टैलेंट ज़ीरो, पर स्टाइल फ़ुल VIP क्लास! 😎✨
इनका अंदाज़ ऐसा कि आईना भी सोच में पड़ जाए —
“भाई, इतनी सेल्फ-कॉन्फिडेंस की सप्लाई आती कहाँ से है?”

किसी फ़ंक्शन में इनकी चाल कभी इतनी तेज़ कि लगे,
वेलकम रेड कार्पेट नहीं, फ़्लाइंग कार्पेट बिछा है। 💨
तो कभी इतनी धीरे कि घोंघा भी ताने मार दे। 🐌💢

लड़कों के ग्रुप की मस्तियाँ?
किसी थर्ड क्वालिटी वेब सीरीज़ से कम नहीं।

शादी में पंडाल से बाहर निकलना,
किसी दुकान पर जाकर कोल्ड ड्रिंक पीना
और उस वक़्त का फीलिंग मोड — जैसे बीयर गटक रहे हों!
बीयर भले ही कोई अच्छी चीज़ न हो,
पर इनके लिए वही ग्लैमर का सिलेबस है। ✨

अब लड़कियों के ग्रुप की कहानी अलग है —
ये समझती हैं कि कोई उनकी छोटी-मोटी चालबाज़ियाँ पकड़ ही नहीं सकता।

इनका टैलेंट?
जानबूझकर अपना ऐसा ग्रुप बनाना,
जिसमें बाकी लड़कियाँ “साधारण शक्ल-सूरत” वाली हों,
ताकि पूरे शादी समारोह में यही सबसे हसीन दिखें, और यही चीज़ कैमरा भी कैप्चर कर ले।

हद तब होती है जब ये किसी और की स्टाइल को कॉपी करके इतराती हैं,
और सोचती हैं कि ओरिजिनैलिटी फ़िल्टर से आती है।

बाकियों की ड्रेस और ज्वेलरी की तारीफ़ करेंगी —
“Oh my God! You look so cute!”
पर दिल में सोचेंगी —
“Thank God, मैं ज़्यादा सुंदर लग रही हूँ।” ✨

सबसे मज़ेदार बात —
आवाज़ किसी और को देंगी,
लेकिन नज़रें सिर्फ़ “Special One” पर। 👀💖
यानी किसी को बेवजह पुकारा जाएगा,
सिर्फ़ इसलिए कि वो ध्यान दे दे।

इन्हें लगता है कि उनकी चालाकी कोई पकड़ नहीं सकता —
अरे बहन, जिनमें Sixth Sense होती है,
वो तुम्हारी हर चाल, हर मूव, हर जेस्चर पढ़ लेते हैं। 🧠

बस दिक्कत ये है कि शायद उन्हें खुद पता नहीं
कि Sixth Sense होती क्या है। 😅

ये वही लड़कियाँ हैं जो घर पर तो बर्तन माँजते हुए भी गाना गुनगुनाती हैं 🎶,
पर शादी में खाने के स्टॉल पर आकर उनके चेहरे पर ऐसा एक्सप्रेशन आता है,
जैसे वे किसी “Infection Zone” में आ गई हों।

डर रहता है कि कहीं ड्रेस पर दाग न लग जाए,
क्योंकि अभी तो इसी ड्रेस से “फलाँ-फलाँ” शख्स की शादी में भी काम चलाना है।

इसलिए कहते हैं —
जब इंसान खुद को बेवजह VIP समझने में सुकून महसूस करने लगे,
तो उसे किसी समाजशास्त्र की नहीं,
बस एक आईने की ज़रूरत होती है।



🎥 अब आते हैं सबसे बड़े कलाकारों पर —
वो जो शादी में वीडियोग्राफ़र की पूरी टीम होने के बावजूद
लगातार मोबाइल से वीडियो बनाने या फ़ोटो लेने में लगे रहते हैं।

अरे भाई! दो-तीन महीनों बाद पूरी एचडी कैसेट और फ़ोटो ऐल्बम मिलने ही वाली है,
तो फिर ये “Just Now Moment” वाली भूख क्यों?

हाँ, ये बात मानी कि कुछ ऐसा फ़िल्माएँ
जिसमें Creativity, Adventure, Entertainment या ऐसा ही कुछ बेहतरीन शामिल हो —
जो बाद में Editing के दम पर और भी मज़ा दे जाए।

लेकिन ये लोग शादी में बेवजह मोबाइल हाथ में लिए रहते हैं —
हर डिश, हर नाच, हर जोड़ी —
सब कुछ मोबाइल कैमरे में कैद होना चाहिए।

भले ही वहीं पर पूरी वीडियोग्राफ़र टीम वही काम
और बेहतर तरीक़े से कर रही हो,
फिर भी इन्हें “अभी-अभी का Moment” चाहिए।

फिर घर जाकर वही फुटेज Editing App में डालेंगे,
कुछ फ़िल्टर और Trending Songs लगाएंगे,
फिर Snapchat, Instagram और WhatsApp पर झोंक देंगे —
“Memories for Life 💫” के कैप्शन के साथ।

पर सच्चाई ये है कि मोबाइल की यादें
Storage Full का नोटिफ़िकेशन आते ही डिलीट हो जाती हैं।
यादें नहीं, ये बस Digital दिखावा है।



🎬 अब बात करते हैं वीडियोग्राफ़र की —
भाई, ये लोग भी एक अलग ही लेवल पर हैं!
किसी की भी प्लेट में कैमरा घुसा देंगे,
जैसे Paneer Tikka भी कोई सेलिब्रिटी हो।

दुनिया में कोई Camera-Shy है, कोई Camera-Crazy।
इसलिए, खाना चाहे बुफ़े सिस्टम में हो या चेयर–टेबल पर,
वीडियो दूर से बनाओ यार!

किसी की भी प्लेट या पत्तल में कैमरा घुसा देना,
या हर दो मिनट में “इधर देखिए, इधर देखिए” की रट लगाना —
अरे भाई, थोड़ी Originality भी रहने दो!

साइड फ़ेस से भी लोग समझ जाते हैं
कि कौन, किसे, क्या दे रहा है।

पूरा चेहरा दिखाने की ज़िद ऐसे करते हैं,
मानो किसी नेताजी की समाजसेवा पर डॉक्यूमेंट्री बन रही हो।

न ये कोई कला है, न समझ —
बस मूर्खता है!
जो पीढ़ी दर पीढ़ी सिर्फ़ भेड़चाल के सहारे चली आ रही है।

पर गलती इनकी भी नहीं —
जब लोग खुद कैमरे के सामने आने के लिए मिन्नतें करते हैं,
“भाई, एक फोटो इधर भी!”
तो कैमरा वाला तो यही सोचेगा —
“मैं तो Public Demand पर हूँ!”



निष्कर्ष:
दुनिया में हर तरह के लोग हैं —
कुछ दिखावे से भरे,
और कुछ अंधी भीड़ में बहते हुए।

ये “हद से ज़्यादा Attitude”
और “ज़रूरत से ज़्यादा Expressions”
अब तो मानो एक Social Habit बन चुकी है।

शायद ऐसे ही “इतराते चेहरों” को देखकर
किसी शायर ने क्या ख़ूब कहा था —

“चाहत करो उससे, जिसमें खामियाँ बेशुमार हों,
ये खूबियों से भरे चेहरे इतराते बहुत हैं।”

और सच कहूँ —
ऐसे इतराते चेहरे हर शादी में मिल ही जाते हैं।
कोई उन पर हँस देता है,
और कोई... कैमरे में कैद हो जाता है!