दिल और आत्मा के अदृश्य रिश्ते

दिल और आत्मा के अदृश्य रिश्ते

Ghibli-style illustration inspired by Shabbir Khan’s life and writings

कभी-कभी ज़िंदगी में कुछ ऐसा घटता है, जो हमारी समझ से परे होता है।

जैसे — कोई दूर से हमारे बारे में सोच रहा हो, हमें याद कर रहा हो... और उसी पल, हम भी अनजाने में ही उनके ख्यालों में खो जाते हैं।
या कोई हमें महसूस कर रहा हो, और अनायास ही हम खुद को उनके सामने पाएँ — मानो कोई अदृश्य धागा हमें वहाँ खींच लाया हो।

एक बार की बात है — मैं अपने कमरे में था, जो घर की दूसरी मंज़िल पर है।
मैं अपने पर्सनल कंप्यूटर पर कुछ काम कर रहा था।
उसी वक़्त मेरे चाचा को मुझसे कोई ज़रूरी काम रहा होगा, और वे नीचे से मेरी खिड़की की ओर देख रहे थे — शायद वे मुझसे कुछ कहना चाहते थे।
जैसे ही उन्होंने ऊपर देखा, और उससे पहले कि वे मुझे देख पाते, मैंने भी उसी पल खिड़की से बाहर झाँक लिया — मानो किसी अदृश्य एहसास ने मुझे उनकी ओर खींच लिया हो।

यह पहली बार नहीं था।
मैंने ऐसा कई बार अनुभव किया था — खासकर अपने आस-पड़ोस के दोस्तों के साथ।
जब भी कोई मुझे सच्चे दिल से याद करता, मैं किसी अनजान आवेग से खुद को उनके पास जाता हुआ पाता।
यह महज़ इत्तेफ़ाक नहीं था; यह एक एहसास था — शब्दों से परे एक जुड़ाव।

मगर इनमें एक वाक़या ऐसा था… जो इन तमाम अनुभवों से कहीं ज़्यादा गहरा और असरदार था।

एक लड़की थी — जो अक्सर हमारे घर कुछ सीखने के सिलसिले में आती थी।
पता नहीं कब उसके मन में मेरे लिए भावनाएँ जाग उठीं। इसमें मेरी कोई भूमिका नहीं थी।
मैंने तो उसे कभी उस नज़र से देखा ही नहीं था।

मैं उसे नज़रअंदाज़ करता रहा, क्योंकि उस समय मेरा पूरा ध्यान बोर्ड एग्ज़ाम की तैयारी में लगा हुआ था।
मैं उस वक़्त टीनएज के नाज़ुक दौर से गुज़र रहा था, जहाँ दिल और दिमाग़ के बीच अक्सर टकराव चलता रहता है।

फिर एक दिन ऐसा हुआ, जब उसने खुद ही साफ़ कर दिया कि वह मुझसे बेहद प्यार करने लगी है।

मुझे तब हैरानी हुई, जब एहसास हुआ कि वह ऐसे परिवेश से आती है, जो मेरे घर-परिवार और समाज से बिल्कुल अलग था।
बात सिर्फ आपसी जुड़ाव की नहीं थी — हमारे बीच धर्म की ऊँची दीवारें खड़ी थीं।
मेरा धर्म अलग था, उसका धर्म भी अलग था, और वह अपने धर्म की एक उच्च जाति से थी —
जहाँ प्रायः केवल समान वर्ण में विवाह को ही मान्यता दी जाती है।
वहाँ अंतर-जातीय विवाह भी कठिन होता है, और मेरे धर्म से उसका संबंध उनके समाज के लिए और भी बड़ा विषय था।
तभी मुझे समझ आ गया था कि यह रिश्ता आसान नहीं होगा।

जब मैंने कोई जवाब नहीं दिया, तो वह मुझसे कुछ नाराज़-सी हो गई।
लेकिन उस समय मेरी तरफ़ से कोई गलती नहीं थी।
मैं भले ही टीनएजर था, लेकिन हर निर्णय लेने से पहले उसके परिणामों को तौलने की आदत मुझमें पहले से थी।

मैं उन लोगों में नहीं था जो किसी की ज़िंदगी से खेल जाएँ — और वह भी वैसी नहीं थी।
उसका इरादा भी पवित्र था; वह मुझसे जीवनभर का साथ चाहती थी।

उसकी खूबसूरती और सच्ची भावनाओं के बावजूद, मेरा मन एक ही बात में उलझा रहा —
इस रिश्ते में आने वाली संभावित कठिनाइयाँ।

जीवन की उलझनों और सामाजिक दबावों को देखते हुए, मैंने एक दिन शांत मन से निर्णय लिया, और सम्मानपूर्वक उसका हमारे घर आना बंद करवा दिया।

मेरा यह फ़ैसला आपको शायद गलत लगे,
लेकिन सच तो यह है कि मैंने उसके परिवार का भरोसा नहीं तोड़ा।
मैंने जो किया, वह उसके और अपने परिवार की भलाई के लिए किया था —
और इसलिए, अपने दिल को समझाते हुए, मैंने खुद को सही ठहराया।

वक़्त बीतता गया…

एक दिन मैं चाय पीने के बाद अपने कमरे की सफ़ाई कर रहा था।
सफाई करते-करते जैसे ही मैं अंदर वाले कमरे में पहुँचा, न जाने क्यों, मैं अचानक तेज़ी से अपने कमरे की ओर भागा।

मैंने खिड़की से बाहर झाँका — वही लड़की, अपने भाई के साथ, हमारे घर के सामने से गुज़र रही थी।

कुछ देर बाद — उसी दिन — मैं वॉशरूम में था।
जैसे ही बाहर निकलने को था, मेरा ध्यान अचानक दरवाज़े की कुंडी से हटकर ऊपर वाले रोशनदान की तरफ चला गया।

हमेशा की तरह कुंडी की ओर देखने के बजाय,
मैंने रोशनदान से बाहर देखा — और वही लड़की, फिर से, अपने भाई के साथ हमारे घर के सामने से गुज़र रही थी।

तभी मुझे एहसास हुआ — जब भी वह हमारे घर के सामने से गुज़रती थी,
मैं अनायास ही उसे देखने के लिए बाहर झाँकने लगता था।

पता नहीं ऐसा क्यों होता था कि जब वह हमारे घर के सामने से निकलती,
तो मैं अनायास ही बाहर झाँकने चला जाता — जबकि उस वक्त मुझे ये भी नहीं मालूम होता था कि मैं आखिर किसे देखने जा रहा हूँ।

भले ही जान-बूझकर मैं उसे याद न करता था, मेरा मन उससे जुड़ा हुआ था।
मैंने उसे चाहा या नहीं, यह कहना कठिन है — लेकिन वह मेरे जीवन का हिस्सा बन चुकी थी।

जब वह आसपास होती थी, मेरा अचेतन मन जैसे खुद-ब-खुद सतर्क हो जाता था।
शरीर अनायास प्रतिक्रिया देता था — जैसे अचानक खिड़की की ओर दौड़ पड़ना, बिना सोचे-समझे।

कुछ संबंध ऐसे होते हैं, जो शब्दों में समझाए नहीं जा सकते।
इंसानों के बीच एक सूक्ष्म, अदृश्य भावनात्मक धागा जुड़ जाता है — जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है।

मेरा अंतर्ज्ञान बार-बार सही सिद्ध हो रहा था, क्योंकि वो भावनाएँ सच्ची थीं।
मेरी चेतना, मेरे भीतर का गहरा अस्तित्व, उससे किसी न किसी रूप में जुड़ चुका था।

निष्कर्ष:
यह सिर्फ आकर्षण नहीं था — यह आत्मा से आत्मा का जुड़ाव था।
मन भले कुछ और कहे, लेकिन आत्मा जिसे पहचान ले, उसे नकारा नहीं जा सकता।
और जब आत्माएँ जुड़ जाती हैं — तो इंसानी चेतना से परे भी बहुत कुछ महसूस होने लगता है।